असली लाभ
किसी समय एक आदमी के पास बहुत से
पशु-पक्षी थे। उसने सुना था कि गांव के बाहर एक संत आये हुए है, जो पशु-पक्षियों
की भाषा समझते है। वह उनके पास गया और उनसे उस कला को सीखने की हठ करने लगा।
संत ने शुरुआत में कई बार टालने की कोशिश भी की, पर वह आदमी संत की
सेवा में जुटा रहा। अंत में प्रसन्न होकर संत ने व्यक्ति को वह कला सिखा दी। उसके
बाद से वह व्यक्ति पशु-पक्षियों की बातें सुनने लगा।
एक दिन मुर्गे ने कुत्ते से कहा कि घोड़ा शीघ्र मर जायेगा। यह सुनकर
उस व्यक्ति ने घोड़े को बेच दिया। इस तरह वह नुकसान से बच गया। कुछ दिनों के बाद
उसने उसी मुर्गे को कुत्ते से कहते सुना कि जल्द ही खच्चर मरने वाला है। उसने
नुकसान से बचने की आशा में वह खच्चर भी बेंच दिया। फिर मुर्गे ने कहा कि नौकर की मृत्यु होने वाली है। बाद में उसके family को कुछ ने देना पड़े, इसलिए उस
व्यक्ति ने नौकर को नौकरी से हटा दिया। वह बहुत खुश हो रहा था कि उसे उसके ज्ञान
का इतना फल प्राप्त हो रहा है। तब एक दिन उसने मुर्गे को कुत्ते से कहते सुना कि
वह आदमी भी मर जाने वाला है। अब वह भय से कांपने लगा। वह दौड़ता हुआ संत के पास गया।
पूछा कि अब क्या करूं?
संत ने कहा, ‘जो अब तक कर रहे थे।‘
व्यक्ति ने कहा, ‘आप क्या कह रहे है, मैं समझा नही?’
संत ने कहा, ‘जाओ और स्वयं
को भी बेच डालो।‘
व्यक्ति ने कहा, ‘आप मजाक क्यों कर रहे हैं? मैं परेशान हूँ और आपसे
पूछ रहा हूँ कि क्या करूं?
संत ने कहा, ‘जो तुम्हारे अपने थे, तुमने उनका अंत जानकर उन्हें बेच
दिया। उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा। तुम खुश हुए कि हानि से बच गये।
तर्क के हिसाब से अभी भी वही करो, जो अब तक किया है। अब तक तुम भौतिक हानि से बचने
के लिए सब कर रहे थे। फिर अब भय क्यों? अभी समय है, खुद को बेच लो। जो भी मिल
जाएँ, बचा लो, लाभ कर लो। बाद में तो वो भी नही मिलेगा। तुमने कभी मुर्गे से जानने
की कोशिश नही की कि मैं कब मरूँगा।? अगर यह जानते तो life को इस इस तरह से न
बिताते, जैसे बिता रहे थे। अपने अंत को जानने वाले व्यर्थ के लाभ में नही पड़ते। वे
असली लाभ कमाने में लगे रहते है।
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