Sunday, January 18, 2015

दृश्य बदल रहा है, पर द्रष्टा वही है








नये साल के समय बहुत से लोगो को अचानक यह अहसास होता है,’अरे! एक साल और बीत गया !’ समय धारा के एस बहाव के प्रति हम कुछ क्षणों के लिए आशचर्य करते है और उसके बाद फिर से व्यस्त हो जाते है अजीब बात ये है की यह लगभग हर साल होता है। अजीब बात यह है कि इन क्षणों में गहराई से जाये तो हमे ये बोध होगा की हमारे अंदर एक ऐसा पहलू है, जो समय की इन सभी घटनाओ का साक्षी अपरिवर्तनीय है और उसी संदर्भ से हम समय के साथ आने वाले बदलाव का अवलोकन कर पाते है।

जीवन में बीती सभी घटनाये आज एक सपना बन गई है। ज्ञान यानि जीवन की इस सपना रूपी प्रकृति के बारे में सजग होना, जो अब भी बीतता जा रहा है। इस ज्ञान से अंदर से बहुत शक्ति मिलती है। और घटनाओ ओर परिस्थितियों से आप विचलित नही होते। साथ ही, घटनाओ का जीवन में एक अपना स्थान है। हमे उनसे सीख लेकर आगे बढने की आवश्यकता है।
जो भी चुनौतिया हो,हमे एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए प्रयासरत रहने की आवश्यकता है। यह तभी सम्भव है,जब हम अपने भीतर आत्मस्थित होकर तटस्थ रहे। आप ही के अंदर एक अभिनेता भी है और एक दर्शक भी। जितना तुम अपने अंदर जाते हो, उतना ही तुम्हारा सक्शिस्वरूप पहलू बढ़ता है और तुम घटनाओ से अछूते रहते हो। जितना तुम बाहर जाते हो, उतना ही अधिक तुम्हारा अभिनेता परिस्थितियों के अनुकूल प्रतिकिया देने में दक्ष हो जाता है। हमारे अस्तित्व के ये दो बिलकुल विपरीत पहलू ध्यान द्वारा पोषित होते है। जब तुम आत्मा के समीप आते हो तो तुम्हारे द्वारा किये गये कर्म दुनिया में अधिक प्रभावशाली बन जाते है और दुनिया में किये गये सही कर्म आत्मा के समीप जाने के लिए सहायक होते है।
समय लोगो को बदलता है, पर कुछ ऐसे लोग है, जो समय को बदलते है। आप उनमे से एक रहे।

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