Wednesday, August 19, 2015

विवेकानंद जी (Vivekananda Ji) के जीवन का संवाद




मुंशी फैज अली ने स्वामी विवेकानंद से पूछा:” स्वामी जी हमे बताया गया है कि अल्लाह एक ही है।यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा?”

स्वामी जी बोले, “सत्य है।“

मुंशी जी बोले, “तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये? जैसे कि हिन्दू, मुस्लमान, सिख्ख,ईसाई और सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रन्थ भी दिए। एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या ऐतराज था। सब एक होते तो न कोई लड़ाई और न कोई झगडा होता।“

स्वामी जी हसते हुए बोले, “मुंशी जी वो सृष्टि कैसी होती जिसमे एक ही प्रकार के फूल होते। केवल गुलाब होता, कमल या रंजनिगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते।“

फैज अली ने कहा सच कहा आपने यदि एक ही दाल होती तो खाने का स्वाद भी एक ही होता। दुनिया तो बड़ी फीकी सी हो जाती।

स्वामी जी ने कहा, मुंशीजी इसलिए तो उपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव-जंतु और इंसान बनाये ताकि हम पिंजरे का भेद भूलकर जीव की एकता को पहचाने।

मुंशी जी ने पूछा, इतने मजहब क्यों?

स्वामी जी ने कहा, “मजहब तो मनुष्य ने बनाये है, प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है।“
मुंशी जी ने कहा कि, “ऐसा क्यों है कि एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ और दुसरे में कहा गया है कि गाय मत खाओ,सुअर खाओ और तीसरे में कहा गया कि गाय खाओ सुअर न खाओ;

इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते है कि मना करने पर जो इसे खाए उसे अपना दुश्मन समझो।“

स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी पूछे कि “क्या ये सब प्रभु ने कहा है?”
मुंशी जी बोले नही,”मजहबी लोग यही कहते है।“

स्वामी जी बोले,”मित्र; किसी भी देश या प्रदेश का भोजन वहाँ की जलवायु की देन है। सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता, वह सागर से पकड़ कर मछलिया ही खायेगा। उपजाऊ भूमि के प्रदेश में खेती हो सकती है। वहाँ अन्न फल एवं शाक-भाजी उगाई जा सकती है। उन्हें अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे। उन्होंने गाय को अपनी माता माना, धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना। क्योकि ये सब उनका पालन पोषण माता के समान ही करती है।“

“अब जहा मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी? खेती नही होगी तो वे गाय और बैल का क्या करेगे? अन्न है नही तो खाघ के रूप में पशु को ही खायेगे। तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है? वही स्थिति अरब देशो में है। जापान में भी इतनी भूमि नही है कि कृषि पर निर्भर रह सके।“
स्वामी जी फैज अली की तरफ मुखातिब होते हुए बोले,”हिन्दू कहते है कि मंदिर में जाने से पहले या पूजा करने से पहले स्नान करो। मुसलमान नमाज पढने से पहले वाजू करते है। क्या अल्लाह ने कहा कि नहाओ मत, केवल लोटे भर पानी से हांथ-मुँह धो लो?”

फैज अली बोला, “क्या पता कहा ही होगा;

स्वामी जी ने कहा,नही, अल्लाह ने नही कहा; अरब देश में इतना पानी कहा है कि वहाँ पांच समय नहाया जाये। जहाँ पीने के लिए पानी बड़ी मुश्किल से मिलता हो वहाँ कोई पाँच समय कैसे नहा सकता है। यह तो भारत में ही संभव है, जहाँ नदियाँ बहती है, झरने बहते है,कुए जल देते है।
तिब्बत में यदि पानी हो तो वहाँ पांच बार व्यक्ति यदि नहाता है तो ठंड के कारण ही मर जायेगा। यह सब प्रकृति ने सबको समझाने के लिए किया है।“

स्वामी विवेकानंद जी ने आगे समझाते हुए कहा कि,”मनुष्य कि मृत्यु होती है। उसके शव का अंतिम संस्कार करना होता है। अरब देशो में वृक्ष नही होते थे, केवल रेत थी। अत: वहाँ मृतिका समाधि का प्रचलन हुआ, जिसे आप दफनाया कहते है।भारत में वृक्ष बड़ी सख्या में थे, लकड़ी पर्याप्त उपलब्ध थी अत: भारत में अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ। जिस देश में जो सुविधा थी वहाँ उसी का प्रचलन बढ़ा। वहाँ जो मजहब पनपा उसने उसे अपने दर्शन से जोड़ लिया।“

फैज अली विस्मित होते हुए बोला,”स्वामी जी इसका मतलब है कि हमे शव का अंतिम संस्कार प्रदेश और देश के अनुसार करना चाहिए। मजहब के अनुसार नही।“

स्वामी जी बोले,”हाँ; यही उचित है। किन्तु अब लोगो ने उसके साथ धर्म को जोड़ दिया। मुसलमान ये मानता है कि उसका ये शरीर कयामत के दिन उठेगा इसलिए वह शरीर जलाकर समाप्त नही करना चाहता। हिन्दू मानता है कि उसकी आत्मा फिर से नया शरीर धारण करेगी इसलिए उसे मृत शरीर से एक क्षण भी मोह नही होता।“

फैज अली ने पूछा कि,”एक मुसलमान के शव को जलाया जाये और एक हिन्दू के शव को दफनाया जाये तो क्या प्रभु नाराज नही होगे?”

स्वामी जी ने कहा,”प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश है।वैसे प्रभु कभी रुष्ट नही होते वे प्रेमसागर है, करूणा सागर है।“

फैज अली ने पूछा तो हमे उनसे डरना नही चाहिए?

स्वामी जी बोले,”नही; हमे तो ईश्वर से प्रेम करना चाहिए वो तो पिता समान है,दया का सागर है फिर उनसे भय कैसा। डरते तो उनसे है हम जिससे हम प्यार नही करते।“

फैज अली ने हाँथ जोडकर स्वामी विवेकानंद जी से पूछा,”तो फिर मजहबो के कठघरो से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है?”

स्वामी जी ने फैज अली कि तरफ देखते हुए मुस्कराकर कहा,”क्या तुम सचमुच कठघरो से मुक्त होना चाहते हो?”

फैज अली ने स्वीकार करने की स्थिति में अपना सर हिला दिया।

स्वामी जी ने आगे समझाते हुए कहा,”फल की दूकान पर जाओ,तुम देखोगे वहाँ आम,नारियल,केले,संतरे,अंगूर आदि अनेक फल बिकते है। किन्तु वो दुकान तो फल की दुकान ही कहलाती है। वहाँ अलग-अलग नाम से फल ही रखे होते है।“ 

फैज अली ने स्वीकार करने की स्थिति में अपना सर हिला दिया। 

स्वामी जी ने आगे समझाते हुए कहा,” अंश से अंशी की ओर चलो। तुम पाओगे कि सब उसी प्रभु के रूप है।“

फैज अली अविरल आचर्श्य से स्वामी विवेकानंद जी को देखते रहे और बोले,”स्वामी जी मनुष्य ये सब क्यों नही समझता?”

स्वामी विवेकानंद जी ने शांत स्वर में कहा,”मित्र; प्रभु की माया को कोई नही समझता। मेरा मानना तो यही है कि, सभी धर्मो को गंतव्य स्थान एक है। जिस प्रकार विभिन्न मार्गो से बहती हुई नदियाँ समुंद में जाकर गिरती है, उसी प्रकार सब मतमतांतर परमात्मा की ओर ले जाते है। मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है।“



“इस article को हमको विचार और मनन करना चाहिए कि वास्तव में धर्म का रूप क्या है। क्या वो है जो पंडितो और मौलवियों ने अपने फायदे के लिए धर्म का एक सांप्रदायिक रूप दे दिया है, या वो है जो ईश्वर ने प्रकृति के माध्यम से हम सब मानव जाति के बनाया है। जो हममे एकता का बल देता है और एक दुसरे को प्रेम करना सिखाता है। इस पर हर मानव जाति को मनन करना चाहिए, चाहे हो किसी धर्म या जाति का हो। प्रकृति हमे एक ही चीज सिखाती है वो है ‘वसुधैव कुटुम्बकम॒’ “
                     Amit Gupta      






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