नई
दिल्ली:
15 August यानी भारत के 69वें स्वाधीनता दिवस की तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं। अगर आप भी आजादी के इस पर्व पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की
तैयारियों में जुटे हैं तो तिरंगा से जुड़ी ये अहम बातें आपके लिए जानना बेहद
जरूरी हैं।
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा-
भारत का राष्ट्रध्वज
समतल और आयताकार तिरंगा है। इसकी लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 2:3 होता है। तीन रंगों
की समान आड़ी पट्टिका जिनमें सबसे ऊपर केसरिया, मध्य में सफेद तथा
नीचे हरे रंग की पट्टी है। सफेद रंग की पट्टी पर मध्य में सारनाथ स्थित अशोक
स्तंभ का चौबीस शलाकाओं वाला चक्र है,
जिसका व्यास सफेद रंग की पट्टी की
चौड़ाई के बराबर होगा।
तिरंगे के रंग और उनका अर्थ-
राष्ट्रीय ध्वज की
ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की
पट्टी का श्वेत रंग धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली
हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। सफेद पट्टी पर बने चक्र को धर्म चक्र कहते हैं। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र
कहते हैं जो तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए
सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन
गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।
जब सबका हुआ तिरंगा-
26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया
और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्टरी
में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के इसे फहराने की अनुमति
मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी
समय फहरा सकते हैं। बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का कठोरतापूर्वक पालन करें
और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें।
विशेष परिस्थिति-
जब किसी राष्ट्र
विभूति का निधन होता है तथा राष्ट्रीय शोक घोषित होता है, तब ध्वज को झुका दिया
जाना चाहिए, लेकिन
जहां जिस भवन में उस राष्ट्र विभूति का
पार्थिव शरीर रखा है, वहां उस भवन
का ध्वज झुका रहेगा तथा जैसे ही पार्थिव
शरीर अंत्येष्टि के लिए बाहर
निकालते हैं, वैसे ही ध्वज को पूरी
ऊंचाई तक फहरा दिया जाएगा।
शवों पर लपेटना-
राष्ट्र पर प्राण
न्योछावर करने वाले फौजी रणबांकुरों के शवों पर एवं राष्ट्र की महान विभूतियों के
शवों पर भी ध्वज को उनकी शहादत को सम्मान देने के लिए लपेटा जाता है, तब केसरिया पट्टी सिर तरफ एवं हरी पट्टी पैरों की तरफ होना चाहिए, न कि सिर से लेकर पैर
तक सफेद पट्टी चक्र सहित आए और केसरिया और हरी पट्टी दाएं-बाएं
हों। याद रहे शहीद या विशिष्ट व्यक्ति के शव के साथ ध्वज को जलाया या दफनाया
नहीं जाता, बल्कि मुखाग्नि क्रिया से पूर्व या कब्र में शरीर रखने से
पूर्व ध्वज को हटा लिया जाता है।
तिरंगे का नष्टीकरण-
अमानक, बदरंग कटी-फटी स्थिति
वाला ध्वज का स्वरूप फहराने योग्य नहीं होता। ऐसा करना ध्वज का अपमान
होकर अपराध है, अत: वक्त की मार से जब कभी ध्वज ऐसी स्थिति हो जाए तो गोपनीय
तरीके से सम्मान के साथ उसे अग्नि प्रवेश दिला दिया जाता है। या वजन/रेत
बांधकर पवित्र नदी में जल समाधि दे दी जाती है। यही प्रकिया पार्थिव
शरीरों पर से उतारे गए ध्वजों के साथ भी किया जाता है।
तिरंगे का दुरुपयोग-
राष्ट्रीय ध्वज को
सांप्रदायिक लाभ, पर्दे या वस्त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है।
जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक
फहराया जाना चाहिए। इस ध्वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्पर्श
नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों पर,
रेलों,
नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता। किसी अन्य ध्वज या ध्वज पट्ट को हमारे ध्वज से ऊंचे
स्थान पर नहीं लगाया जा सकता है। तिरंगे ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब
के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता। तिरंगे को
अंडरगार्मेंट्स, रूमाल या कुशन आदि बनाकर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
तिरंगे का अपमान-
Flag code ऑफ़ India के
तहत झंडे को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाएगा। उसे कभी पानी में नहीं डुबोया
जाएगा और किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। यह नियम भारतीय संविधान के
लिए भी लागू होता है। प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की
धारा-2 के मुताबिक, ध्वज और संविधान के अपमान करने वालों के खिलाफ सख्त क़ानून
हैं। अगर कोई शख़्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसे कपड़ा बना देता
हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद हुए
जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो,
तो इसे तिरंगे का अपमान माना जाएगा।
तिरंगे की यूनिफॉर्म बनाकर पहन लेना भी ग़लत है। अगर कोई शख़्स कमर के
नीचे तिरंगा बनाकर कोई कपड़ा पहनता हो तो यह भी तिरंगे का अपमान है।
कैसे बनता है तिरंगा-
1968 में तिरंगा निर्माण के मानक तय किए गए। ये नियम अत्यंत
कड़े हैं। केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडा बनाने के लिए उपयोग
किया जाता है। कपड़ा बुनने से लेकर झंडा बनने तक की प्रक्रिया में कई बार
इसकी टेस्टिंग की जाती है। खादी बनाने में केवल कपास, रेशम और ऊन का प्रयोग
किया जाता है। इसकी बुनाई सामान्य बुनाई से भिन्न होती है। ये बुनाई
बेहद दुर्लभ होती है।
निर्माण के लिए हाथ
से बनी खादी का उत्पादन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के एक समूह द्वारा पूरे
देश में मात्र च्गरगज् गांव में किया जाता है जो उत्तरी कर्नाटक के
धारवाड़ जिले में बेंगलूर-पूना रोड पर स्थित है। इसकी स्थापना 1954 में
हुई, परंतु अब
निर्माण ऑर्डिनेंस क्योरिंग फैक्टरी
शाहजहांपुर, खादी ग्रामोद्योग आयोग
मुंबई एवं खादी ग्रामोद्योग आयोग दिल्ली
में होने लगा है। निजी निर्माताओं
द्वारा भी राष्ट्रध्वज का निर्माण किए
जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन
गौरव व गरिमा को दृष्टिगत रखते हुए यह
जरूरी है कि ध्वज पर ISI (भारतीय
मानक संस्थान) की मुहर लगी हो। बुनाई से
लेकर बाजार में पहुंचने तक कई बार BIS प्रयोगशालाओं में इसका परीक्षण होता है।
बुनाई के बाद सामग्री
को परीक्षण के लिए भेजा जाता है। कड़े गुणवत्ता परीक्षण के बाद उसे वापस कारखाने
भेज दिया जाता है। इसके बाद उसे तीन रंगों में रंगा जाता है। केंद्र में
अशोक चक्र को काढ़ा जाता है। उसके बाद इसे फिर परीक्षण के लिए भेजा जाता
है। BIS झंडे की जांच करता है इसके बाद ही इसे बाजार में बेचने के लिए
भेजा जाता है।
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