बेजुबान पत्थर पर लदे है करोड़ो के गहने मंदिरों
में।
उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को
देखा है।
सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूरत के आगे।
बाहर एक फकीर को भूख से तडप के
मरते देखा है।।
लदी हुई है रेशमी चादरों से वो
हरी मजार पर
बहार एक बूढी अम्मा को ठंड से
ठिठुरते देखा है।
वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में
हाल के लिए
घर में उसको 500 रूपये के लिए काम
वाली बाई बदलते देखा है।
सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया
का दर्द मिटाने को
आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते
माँ बाप को देखा है।
जलाती रही जो अखण्ड ज्योति देशी घी
की दिन रात पुजारन
आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है।
जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी
कभी जीते जी
आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद
बाद ।
दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस
बेटी को जबरन बाप ने
आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह
देखा है।
मारा गया वो पंडित बेमौत सडक दुर्घटना
में यारो
जिसे खुद को काल सर्प, तारे और हाथ की
लकीरों का माहिर लिखते देखा है।
जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी
मिसाल दोस्तों
आज उसी आगन में खिंचती दीवार को देखा
है।
Amit Gupta
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