Saturday, March 12, 2016

Respect and Disrespect

एक समय की बात है कि किसी university में कुलपति का पहला दिन था। सभी स्टाफ के लोग एकत्रित हुए। अपने पहले सम्बोधन में वे office में खड़े थे कि तभी वहां उपस्थित एक वरिष्ठकर्मी ने व्यंग्य करते हुए कहा,’ कुलपति महोदय, आपको यह नही भूलना चाहिए कि आपके पिता, हमारे family के जूते बनाया करते थे।‘ यह कहकर वह कर्मी हंसने लगा और उसके साथ वहां उपस्थित कुछ अन्य कर्मी व् शिक्षक भी। वे खुश थे कि उन्होंने सबके सामने कुलपति की हंसी उड़ाई है। वहां उपस्थित कुछ लोगो को इस बात का बुरा भी लगा। वे चिंतित हो गये कि पता नही अब क्या होगा? कुलपति क्या करेगे?

कुलपति ने सीधा उस व्यक्ति की ओर देखा और कहा,’ Sir, मै जानता हूँ कि मेरे पिता आपके family के लिए जूते बनाया करते थे, और हो सकता है कि यहाँ और भी कई लोग होगे, जो उनके हाथ से बने जूते पहन चुके होगे। इसका कारण यह है कि जैसे जूते वे बनाया करते थे, वैसे कोई बना नही सकता।

वे रचनाकार थे। वे मात्र जूते नही बनाते थे, उस प्रक्रिया में पूरी तरह डूब जाते थे। मै आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या आपको उनके बने हुए जूतों से किसी तरह की शिकायत है? मै यह इसलिए पूछ रहा हूँ, क्योकि मै स्वयं भी जूते बनाना जानता हूँ। यदि आपको कोई भी शिकायत होगी, तो मै आपके लिए नये जूते बना दूंगा। लेकिन जितना मै जनता हूँ अब तक मेरे पिता के हाथ के बने हुए जूतों की किसी ने शिकायत नही की है। वे महान थे, अपने काम में दक्ष थे। मुझे अपने पिता पर गर्व है।

वहां उपस्थित सभी लोग चुप हो गये। पूरी सभा में शांति छा गयी। वे हैरान थे कि यह कुलपति किस धातु का बना है। कुलपति को इस बात का अभिमान था कि उनके पिता इतनी कुशलता से अपने काम करते थे कि कोई एक शिकायत उनके काम के लिए सुनने को नही मिली।

हमे भी यह ध्यान रखने की जरूरत है कि हमारी इजाजत के बिना कोई भी हमे ठेस नही पहुंचा सकता। अक्सर परिस्थितियों दुखदायी नही होती। हमारी अपनी प्रतिक्रियाये उन्हें दुखद बना देती है।







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