Friday, December 25, 2015

Mahamana Madan Mohan Malviya मदन मोहन मालवीय


मदन मोहन मालवीयका जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में हुआ था। उनके दादा पं. प्रेमधर और पिता पं. बैजनाथ संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। उनके पिता पं. बैजनाथ, एक उत्कृष्ट कथावाचक (भागवत कथा) भी थे। मदन मोहन की शादी 1878 में मिर्जापुर की कुमारी देवी के साथ हुई थी।
मदन मोहन की शिक्षा पांच साल की उम्र में शुरू हो गई थी। वह एक बहुत मेहनती बालक थे। उन्होंने 1879 में मुइर सेंट्रल कॉलेज से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने 1884 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक किया। उन्होंने कानून की पढ़ाई की और 1891 में एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की, किन्तु उन्होंने कानूनी पेशे में कोई दिलचस्पी नहीं ली।
मदन मोहन मालवीय एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। उन्हें महामनाका खिताब दिया गया था। उन्हें वाराणसी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्थापक के रूप में याद किया जाता है। मदन मोहन मालवीय एक महान विद्वान, शिक्षाविद् एवं राष्ट्रीय आंदोलन के नेता थे। उन्होंने वर्ष 1906 में हिंदू महासभा की स्थापना की। उन्होंने कई दैनिक, साप्ताहिक और मासिक समाचार पत्र और पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया।
12 नवंबर 1946 को 85 वर्ष की आयु में मदन मोहन मालवीय का देहांत हो गया। वह सामाजिक मामलों में एक रूढ़िवादी व्यक्ति थे। उनकी 153 जयंती के एक दिन पहले, 24 दिसंबर, 2014 को उन्हें (मरणोपरांत) भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया। मदन मोहन मालवीय का भारतीय सार्वजनिक जीवन में एक बहुत ही उच्च स्थान है। उन्हें उनकी सौम्यता और विनम्रता के लिए सदैव जाना जाता रहेगा।
-मदन मोहन मालवीय के पौत्र गिरिधर मालवीय ने बताए महामना की सफलता के पांच सूत्र

 पंडित मदन मोहन मालवीय सही मायनों में भारत निर्माता थे। उन्होंने समाज सेवा, वकालत, पत्रकारिता, शिक्षा, साहित्य आदि के जरिए देश को बहुत कुछ दिया है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना और उसमें इंजीनियरिंग व टेक्नोलॉजी के कोर्स चलाकर उन्होंने अंग्रेजों को चुनौती दी। वह नहीं चाहते थे कि आजादी के बाद अंग्रेजों के चले जाने से देश का यांत्रिक ढांचा बर्बाद हो जाए। महामना मालवीय को भारत रत्‍‌न दिए जाने की घोषणा के बाद उनके पौत्र पूर्व जस्टिस गिरिधर मालवीय ने ये शब्द कहे। उन्होंने महामना के जीवन से जुड़े कई पहलुओं पर पत्रकारों से खुलकर बात की।

सफलता के पांच सूत्र

महामना का जीवन स्वच्छता और पवित्रता से भरा था। वह अजातशत्रु थे। किसी से उनका मनमुटाव नहीं था। मृदुभाषी होने के चलते वह सबके प्रिय थे। कोमल हृदय होने के बावजूद वह विचारों के दृढ़ थे। साधारण भोजन करते थे और सफेद वस्त्र पहनते थे। उनके जीवन में सफलता के पांच सूत्र थे। जिनमें देशप्रेम, सतचरित्र, विद्या अध्ययन, आत्म त्याग और स्वस्थ जीवन शामिल हैं। उन्होंने आजीवन इन्हीं का पालन किया।

नौकरी देने के लिए नहीं थी शिक्षा

अंग्रेजी शासन के दौरान कुछ युवाओं ने महामना से शिकायत की कि बीएचयू से पढ़ने के बाद अंग्रेज उन्हें सरकारी नौकरी नहीं दे रहे हैं। इस पर उन्होंने युवाओं को बुलाया और समझाया कि बीएचयू में शिक्षा का उददेश्य कभी सरकारी नौकरी दिलाना नहीं रहा। इसका उददेश्य युवाओं को देश निर्माता बनाना है। आप के भीतर देश- प्रेम की भावना जागृत करना है।

पत्रकारिता में नहीं किया उसूलों से समझौता

 राष्ट्रीय महासभा के मंच पर पहला भाषण देने के बाद वह इतने चर्चित हुए कि काला कांकर के राजा रामपाल सिंह ने उनसे समाचार पत्र हिंदोस्थान का संपादक बनने का आग्रह किया। एक बार राजा द्वारा मद्यपान करके उनका संबोधन करने से वह इतने रुष्ट हुए कि अखबार से अलग हो गए। बाद में वह इंडियन ओपिनियन, हिंदुस्तान रिव्यू, इंडियन पीपुल, लीडर और भारत आदि समाचार पत्रों से जुड़े। इस बीच उन्होंने कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया।
लंबे समय से थी प्रतीक्षा
पूर्व जस्टिस गिरिधर मालवीय ने कहा कि उन्हें ही नहीं बल्कि प्रयाग नगरी को लंबे समय से महामना मालवीय जी को भारत रत्‍‌न प्रदान किए जाने की प्रतीक्षा थी। राष्ट्रपति द्वारा ट्वीट किए जाने के बाद फोन के जरिए उन्हें इसकी जानकारी दी गई। इसके बाद तो बधाई देने वालों का तांता लग गया। सभी ने गिरिधर मालवीय को फोन और व्यक्तिगत तौर पर शुभकामनाएं दीं।


भारत की एकता का मुख्य आधार है एक संस्कृति, जिसका उत्साह कभी नहीं टूटा। यही इसकी 

विशेषता है। भारतीय संस्कृति अक्षुण्ण है, क्योंकि भारतीय संस्कृति की धारा निरंतर बहती रही है

और बहेगी।

 मदनमोहन मालवीय







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