हर साल 22 अप्रैल को पूरी दुनिया में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के प्रणेता अमरीकी सिनेटर गेलार्ड नेलसन हैं। गेलार्ड नेलसन ने, सबसे पहले, अमरीकी औद्योगिक विकास के कारण हो रहे पर्यावरणीय दुष्परिणामों पर अमेरिका का ध्यान आकर्षित किया था।
इसके लिये उन्होंने अमरीकी समाज को संगठित किया, विरोध प्रदर्शन एवं जनआन्दोलनों के लिये प्लेटफार्म उपलब्ध कराया। वे लोग जो सान्टा बारबरा तेल रिसाव, प्रदूषण फैलाती फैक्ट्ररियों और पावर प्लांटों, अनुपचारित सीवर, नगरीय कचरे तथा खदानों से निकले बेकार मलबे के जहरीले ढ़ेर, कीटनाशकों, जैवविविधता की हानि तथा विलुप्त होती प्रजातियों के लिये अरसे से संघर्ष कर रहे थे, उन सब के लिये यह जीवनदायी हवा के झोंके के समान था।
वे सब उपर्युक्त अभियान से जुड़े। देखते-देखते पर्यावरण चेतना का स्वस्फूर्त अभियान पूरे अमेरिका में फैल गया। दो करोड़ से अधिक लोग आन्दोलन से जुड़े। ग़ौरतलब है, सन् 1970 से प्रारम्भ हुए इस दिवस को आज पूरी दुनिया के 192 से अधिक देशों के 10 करोड़ से अधिक लोग मनाते हैं। प्रबुद्ध समाज, स्वैच्छिक संगठन, पर्यावरणप्रेमी और सरकार इसमें भागीदारी करती हैं।
बहुत से लोग पर्यावरणीय चेतना से जुड़े पृथ्वी दिवस को अमेरिका की देन मानते हैं। ग़ौरतलब है कि अमरीकी सिनेटर गेलार्ड नेलसन के प्रयासों के बहुत साल पहले महात्मा गाँधी ने भारतवासियों से आधुनिक तकनीकों का अन्धानुकरण करने के विरुद्ध सचेत किया था। गाँधीजी मानते थे कि पृथ्वी, वायु, जल तथा भूमि हमारे पूर्वजों से मिली सम्पत्ति नहीं है। वे हमारे बच्चों तथा आगामी पीढ़ियों की धरोहरें हैं। हम उनके ट्रस्टी भर हैं। हमें वे जैसी मिली हैं उन्हें उसी रूप में भावी पीढ़ी को सौंपना होगा।
गाँधी जी का यह भी मानना था कि पृथ्वी लोगों की आवश्यकता की पूर्ति के लिये पर्याप्त है किन्तु लालच की पूर्ति के लिये नहीं। गाँधी जी का मानना था कि विकास के त्रुटिपूर्ण ढाँचे को अपनाने से असन्तुलित विकास पनपता है। यदि असन्तुलित विकास को अपनाया गया तो धरती के समूचे प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाएँगे। वह जीवन के समाप्त होने तथा महाप्रलय का दिन होगा।
गाँधीजी ने बरसों पहले भारत को विकास के त्रुटिपूर्ण ढाँचे को अपनाने के विरुद्ध सचेत किया था। उनका सोचना था कि औद्योगिकीकरण सम्पूर्ण मानव जाति के लिये अभिशाप है। इसे अपनाने से लाखों लोग बेरोजगार होंगे। प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होगी। बड़े उद्योगपति कभी भी लाखों बेरोजगार लोगों को काम नहीं दे सकते। गाँधी जी मानते थे कि औद्योगिकीकरण का मुख्य उद्देश्य अपने मालिकों के लिये धन कमाना है।
आधुनिक विकास के कारण होने वाली पर्यावरणीय हानि की कई बार क्षतिपूर्ति सम्भव नहीं होगी। उनका उपरोक्त कथन उस दौर में सामने आया था जब सम्पूर्ण वैज्ञानिक जगत, सरकारें तथा समाज पर्यावरण के धरती पर पड़ने वाले सम्भावित कुप्रभावों से पूरी तरह अनजान था। वे मानते थे कि गरीबी और प्रदूषण का गहरा सम्बन्ध है। वे एक दूसरे के पोषक हैं। गरीबी हटाने के लिये प्रदूषण मुक्त समाज और देश गढ़ना होगा।
गाँधी जी का उक्त कथन पृथ्वी दिवस पर न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। वह विकास की मौजूदा परिभाषा को संस्कारित कर लालच, अपराध, शोषण जैसी अनेक बुराईओं से मुक्त कर संसाधनों के असीमित दोहन और अन्तहीन लालच पर रोक लगाने की सीख देता है। वह पूरी दुनिया तथा पृथ्वी दिवस मनाने वालों के लिये लाइट हाउस की तरह है।
पृथ्वी दिवस की कल्पना में हम उस दुनिया का ख्वाब साकार होना देखते हैं जिसमें दुनिया भर का हवा का पानी प्रदूषण मुक्त होगा। समाज स्वस्थ और खुशहाल होगा। नदियाँ अस्मिता बहाली के लिये मोहताज नहीं होगी। धरती रहने के काबिल होगी। मिट्टी, बीमारियाँ नहीं वरन सोना उगलेगी। सारी दुनिया के समाज के लिये पृथ्वी दिवस रस्म अदायगी का नहीं अपितु उपलब्धियों का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने तथा आने वाली पीढ़ियों के लिये सुजलाम सुफलाम शस्य श्यामलाम धरती सौंपने का दस्तावेज़ होगा।
आज दुनिया
भर में हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला
पृथ्वी दिवस अब महज औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं बचा!
पृथ्वी बहुत व्यापक शब्द है जिसमें जल, हरियाली, वन्यप्राणी, प्रदूषण और इससे जु़ड़े अन्य कारक भी हैं। धरती को बचाने का आशय है इसकी रक्षा के लिए पहल करना। न तो इसे लेकर कभी सामाजिक जागरूकता दिखाई गई और न राजनीतिक स्तर पर कभी कोई ठोस पहल की गई। दरअसल पृथ्वी एक बहुत व्यापक शब्द है, इसमें जल, हरियाली, वन्यप्राणी, प्रदूषण और इससे जु़ड़े अन्य कारक भी शामिल हैं।
धरती को बचाने का आशय है इन सभी की रक्षा के लिए पहल करना। लेकिन इसके लिए किसी एक दिन को ही माध्यम बनाया जाए, क्या यह उचित है? हमें हर दिन को पृथ्वी दिवस मानकर उसके बचाव के लिए कुछ न कुछ उपाय करते रहना चाहिए।
जब पूरी दुनिया 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाती है, अमेरिका में इसे वृक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। पहले पूरी दुनिया में साल में दो दिन (21 मार्च और 22 अप्रैल) पृथ्वी दिवस मनाया जाता था। लेकिन 1970 से 22 अप्रैल को मनाया जाना तय किया गया।
पृथ्वी बहुत व्यापक शब्द है जिसमें जल, हरियाली, वन्यप्राणी, प्रदूषण और इससे जु़ड़े अन्य कारक भी हैं। धरती को बचाने का आशय है इसकी रक्षा के लिए पहल करना। न तो इसे लेकर कभी सामाजिक जागरूकता दिखाई गई और न राजनीतिक स्तर पर कभी कोई ठोस पहल की गई। दरअसल पृथ्वी एक बहुत व्यापक शब्द है, इसमें जल, हरियाली, वन्यप्राणी, प्रदूषण और इससे जु़ड़े अन्य कारक भी शामिल हैं।
धरती को बचाने का आशय है इन सभी की रक्षा के लिए पहल करना। लेकिन इसके लिए किसी एक दिन को ही माध्यम बनाया जाए, क्या यह उचित है? हमें हर दिन को पृथ्वी दिवस मानकर उसके बचाव के लिए कुछ न कुछ उपाय करते रहना चाहिए।
जब पूरी दुनिया 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाती है, अमेरिका में इसे वृक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। पहले पूरी दुनिया में साल में दो दिन (21 मार्च और 22 अप्रैल) पृथ्वी दिवस मनाया जाता था। लेकिन 1970 से 22 अप्रैल को मनाया जाना तय किया गया।
21 मार्च को मनाए जाने वाले 'इंटरनेशनल अर्थ डे' को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन है,
पर इसका महत्व वैज्ञानिक तथा पर्यावरणीय ज्यादा है। इसे उत्तरी
गोलार्ध के वसंत तथा दक्षिणी गोलार्ध के पतझ़ड़ के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। 22
अप्रैल को ही विश्व पृथ्वी दिवस मनाए
जाने के पीछे अमेरिकी सीनेटर गेलार्ड नेल्सन रहे हैं। वे पर्यावरण को लेकर चिंतित रहते थे
और लोगों में जागरूकता जगाने के लिए कोई राह बनाने के प्रयास करते रहते थे।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पृथ्वी दिवस को लेकर देश और दुनिया में जागरूकता का भारी अभाव है! सामाजिक या राजनीतिक दोनों ही स्तर पर इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जाते। कुछ पर्यावरण प्रेमी अपने स्तर पर कोशिश करते रहे हैं, किंतु यह किसी एक व्यक्ति, संस्था या समाज की चिंता तक सीमित विषय नहीं होना चाहिए! सभी को इसमें कुछ न कुछ आहुति देना पड़ेगी तभी बात बनेगी।
पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने के लिए हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, तो कम से कम इतना तो करें कि पॉलिथीन के उपयोग को नकारें, कागज का इस्तेमाल कम करें और रिसाइकल प्रक्रिया को बढ़ावा दें! क्योंकि जितनी ज्यादा खराब सामग्री रिसाइकल होगी, उतना ही पृथ्वी का कचरा कम होगा।
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