भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण ने भादों
मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र के अंतर्गत वृष लग्न में
अवतार लिया। श्रीकृष्ण की उपासना को समर्पित भादों मास विशेष फलदायी कहा गया है।
भाद अर्थात कल्याण देने वाला। कृष्ण पक्ष स्वयं श्रीकृष्ण से संबंधित है। अष्टमी
तिथि पखवाडे़ के बीच संधि स्थल पर आती है। रात्रि योगीजनों को प्रिय है और उसी समय
श्रीकृष्ण धरा पर अवतरित हुए। श्रीमद् भागवत में उल्लेख आया है कि श्रीकृष्ण के जन्म का अर्थ है अज्ञान
के घोर अंधकार में दिव्य प्रकाश।
भागवत पुराण में वर्णन है
भागवत पुराण में वर्णन है कि जीव को संसार का आकर्षण खींचता है, उसे उस आकर्षण से हटाकर अपनी ओर आकषिर्त करने के लिए जो तत्व साकार रूप में प्रकट हुआ, उस तत्व का नाम श्रीकृष्ण है। जिन्होंने अत्यंत गूढ़ और सूक्ष्म तत्व अपनी अठखेलियों, अपने प्रेम और उत्साह से आकषिर्त कर लिया, ऐसे तत्वज्ञान के प्रचारक, समता के प्रतीक भगवान श्रीकृष्ण के संदेश, उनकी लीला और उनके अवतार लेने का समय सब कुछ अलौकिक है।
श्रीमद्
भगवत गीता
यहाँ नीचे भागवत गीता के
दर्शन का संक्षिप्त सार है. भागवत गीता का उपदेश
भारत के हरियाणा
राज्य में कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान पर अपने शिष्य अर्जुन को, भगवान कृष्ण, भगवान स्वयं के द्वारा दिया गया. इन शिक्षाओं को 5000 साल पहले दिया गया था लेकिन ये हमारे जीवन में आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।
गीता को
हिन्दु धर्म मे बहुत खास स्थान दिया गया है। गीता अपने अंदर भगवान कृष्ण के उपदेशो
को समेटे हुए है। गीता को आम संस्कृत भाषा मे लिखा गया है, संस्कृत की आम जानकारी
रखना वाला भी गीता को आसानी से पढ़ सकता है। गीता मे
चार योगों के बारे विस्तार से बताया हुआ है, कर्म योग,
भक्ति योग, राजा योग और जन योग।
गीता को
वेदों और उपनिषदों का सार माना जाता, जो लोग वेदों को पूरा नही पढ़ सकते, सिर्फ गीता के पढ़ने से भी आप को ज्ञान प्राप्ति हो सकती है। गीता न सिर्फ
जीवन का सही अर्थ समझाती है बल्कि परमात्मा के अनंत रुप से हमे रुबरु कराती है। इस
संसारिक दुनिया मे दुख, क्रोध, अंहकार
ईर्ष्या आदि से पिड़ित आत्माओं को, गीता सत्य और आध्यात्म का
मार्ग दिखाकर मोक्ष की प्राप्ति करवाती है।
गीता मे लिखे उपदेश किसी एक मनुष्य विशेष या किसी खास धर्म के लिए नही है, इसके उपदेश तो पूरे जग के लिए है। जिसमे आध्यात्म और ईश्वर के बीच जो गहरा संबंध है उसके बारे मे विस्तार से लिखा गया है। गीता मे धीरज, संतोष, शांति, मोक्ष और सिद्धि को प्राप्त करने के बारे मे उपदेश दिया गया है।
1- तुम अपने अापको भगवान के अर्पित करो। यही
सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
2- आप एक अविनाशी आत्मा हैं और एक मृत्युमय शरीर नहीं है. शरीर पांच तत्वों से बना है
- पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश। एक दिन
शरीर इन तत्वों में लीन हो जाएगा।
3- आत्मा अजन्म है और कभी नहीं
मरता है. आत्मा मरने के बाद भी
हमेशा के लिए रहता है.
तो क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? आप
किस बात से डर रहे हैं?
कौन तुम्हें मार सकता है?
4- क्रोध से भ्रम पैदा होता है.
भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता
है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
5- ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप
में देखता है, वही
सही मायने में देखता है।
6- जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह
शत्रु के समान कार्य करता है।
7- अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य
करना निष्क्रियता से बेहतर है।
8- श्रेष्ठ पुरुष जो-जो
आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह
जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य-समुदाय उसी के
अनुसार बरतने लग जाता है
9- हे अर्जुन! मुझे इन तीनों लोकों में न तो
कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्म में ही
बरतता हूँ॥
10- अतीत में जो कुछ भी हुआ, वह अच्छे के लिए हुआ, जो कुछ हो
रहा है, अच्छा हो रहा है, जो भविष्य
में होगा, अच्छा ही होगा. अतीत के लिए मत रोओ, अपने वर्तमान जीवन पर ध्यान केंद्रित करो , भविष्य के
लिए चिंता मत करो।
11-परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम
मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से
मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके
हो।
दोस्तों महाभारत आज भी जारी है हमारे मन मे ! आज भी अर्जुन यानी हम मोहग्रस्त
है ! मन हमे अपने कर्त्तव्य पथ से पीछे खींच रहा है ! आलस और डर हमे कर्त्तव्य पथ
पर आरूढ़ नहीं होने दे रहे हैं ! दुर्बलता हम पर हावी हो रही है ! काम से ज्यादा उसके
परिणाम की चिंता हमे खाए जा रही है ! मन जकड रहा है , तन निढाल है ! सामने कामों का पहाड़ है ! अवसर हाथ से
निकला जा रहा हैं ! हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं ! है ना ? उठिए , हताशा छोड़िये, गीता के
वचनों से अपने आप को charge कीजिये और चल पड़िए अपने लक्ष्य की तरफ , क्योकि समय हाथ से रेत की तरह फिसला जा रहा है ................
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